शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

रोना आता है जब त्योहार में घर से दूर रहता हूं

त्योहार पर घर से दूर रहना कितना उदास कर देता हैयह वही समझ सकते हैंजो रोजी-रोटी की जद्दोजहद के चलते चाहकर भी ऐसे समय में परिवार के पास नहीं पहुंच पाते। मैं भी घर और परिजनों से दूर हूं। मेरे जैसे कई हजारों लोग भी त्योहार पर अपने घर नहीं जाते होंगे। ज्यादा से ज्यादा यह कि त्योहार के दिन घरवालों से फोन पर बात कर ली। हालांकि अब टेली कॉलिंग की सुविधा भी है। अपनी बात करुंतो त्योहार के मौके पर घर पर ना जा पानामुझे रुला देता है। कुछ देर को जी चाहता है कि सब छोड़-छाड़कर घर भाग जाऊं। परिवार के साथ खुशियां मनाऊंलेकिन यह मुमकिन नहीं। मैं पिछले 11 साल से घर से दूर हूं। कॉलेज के समय त्योहार से पहले लंबी छुट्‌टी पर घर चला जाता था। नौकरी शुरू होने पर क्या त्योहार और क्या आम दिनसब एक जैसे हो गए। कई बार तो पता तक नहीं चलता कि आज कोई त्योहार है। पढ़ाई के दौरान दुर्गा पूजा में घर जाता थातो दीपावली और छठ मनाकर ही लौटता था। अब ले-देकर ऑफिस से कुछ दिनों की छुट्‌टी मिलती है। इसमें भी आने-जाने का दिन शामिल होता है। मैं बिहार के मधुबनी जिले का रहने वाला हूं।रायपुर से बिहार के लिए ज्यादा ट्रेनें भी नहीं हैं। कुछ साल पहले तक तो सिर्फ एक ट्रेन हुआ करती थी साउथ बिहार एक्सप्रेस। रायपुर से सुबह 8 बजे सवार होंतो अगले दिन सुबह 9 बजे राजेन्द्र नगर टर्मिनल स्टेशन पहुंचाती है। फिर बस से मधुबनी तक के सफर में करीब 4-5 घंटे लगते हैं। मधुबनी बस स्टैंड पर अगर फौरन गाड़ी मिल जाएतो समझिए आप किस्मत के धनी हैं। नहीं तो फिर किसी सवारी गाड़ी का इंतजार करें या फिर ऑटो वाली की लूट का शिकार बनें। पिछले कई सालों की तरह इस साल भी मुझे दीपावली घर से दूर ही मनानी होगी। यह और बात है कि लंबे अरसे बाद मुझे परिवार के साथ छठ पूजा मनाने का मौका मिलने वाला है। छठ पूजा का आंखों देखा हाल जनता दरबार पर आपसे जरूर शेयर करूंगा। तो फिर लगे रहिएमजे लेते रहिए और सुझाव भी देते रहिए।

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